कि शक्ति है वह जो नारी में मुस्कुराए !

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उतार- चढ़ाव की पटरी जैसी, चलती है नारी की कहानी। कन्या से लेकर  औरत की, सुलझी-अनसुलझी पहेली उसकी ज़ुबानी।

औरत इंसानियत आज फिर शर्मसार हुई

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औरत इंसानियत आज फिर शर्मसार हुई, तेरे गले से फिर से सूखी रोटी उतार दी गयी, जाने क्या करेंगे और अब ये लोभी दहेज के, किंतनी देनंगे यातना तुझे और अभी भी,

कबतक सहेगी दर्द दहेज का

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बहुत पुराने से चली आ रही है ये रीत दहेज की इसकी बेदी छड़ गयी न जाने कितनी औरत जी, पालता है जिन्हें जी जान से जी करता है देख शादि फिर उनकी जी,

मजबूर हो के ही

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कोई औरत खुद से चाहती नही जाना उन गलियो में, जहा भेजा जाता है कभी कभी ज़ोर ज़बरदस्ती से, जिस जगह को कहते है बदनाम गली, कोई कहता है धंदेवाली गली,

फिर वही दस्तक

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ज़ख़्म अभी भरा नहीं, रंग दिखता हरा नहीं। बोटी-बोटी नोचता रहा, जिस्म हुआ, अधमरा नहीं।