Mirza Ghalib Shayari in Hindi

- Ruthaaashiq

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था

- Ruthaaashiq

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’ शर्म तुम को मगर नहीं आती

- Ruthaaashiq

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

- Ruthaaashiq

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

- Ruthaaashiq

मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी...!

- Ruthaaashiq

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

- Ruthaaashiq

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं! कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं

- Ruthaaashiq

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

- Ruthaaashiq

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