Galib ki Shayari

- Ruthaaashiq

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना, बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना।

- Ruthaaashiq

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को, ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।

- Ruthaaashiq

घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता, वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है।

- Ruthaaashiq

लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं, अच्छा अगर न हो तो मसीहा का क्या इलाज?

- Ruthaaashiq

इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया। वरना हम भी आदमी थे काम के।

- Ruthaaashiq

कोई उम्मीद बर नहीं आती। कोई सूरत नज़र नहीं आती।

- Ruthaaashiq

मौत का एक दिन मुअय्यन है। नींद क्यूँ रात भर नहीं आती।

- Ruthaaashiq

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।

- Ruthaaashiq

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