क्या सुकून में सोई है, क्या दर्द में रोई है, ये बंद है आँखें, क्या सपनों में खोई है..!
क्या है प्यार की ये शर्म, क्या है शर्म नाक ये कर्म, झुकी है ये आँखें, क्या भक्ति ही है इसका धर्म..!
क्या उभरा हुआ ये गुस्सा है, क्या जुदाई का ये किस्सा है, लाल सी आँखे, क्या रो रोकर कोई रूसा है..!
बहुत उमड़कर क्या हँसा है, बहुत मनभरकर क्या रोया है, मोती सी है आँखें, क्या प्रीत में एकटक कोई खोया है..!
छिपाये अगर कोई खता दे, खुल जाए तो सब जता दे, सुखी हो या नमी हो, हो हुनर पढ़नेका तो सब बता दे..!
रोती नहीं है आँखे आजकल, कुछ स्याही का रंग जबसे हाथ लगा है।
रोने से भी इंकार कर देती है अब आँखे, ये दिल बाज नहीं आया- इतनी दफा ठोकर खाने के बाद भी..!
इतने इंतज़ार बाद हमारा यूँ मिलना, बेजुबान से हम- मगर दिल के अरमान आँखों से बयान हो गए।
कभी आँखें फेर ली, कभी आँखें झुका ली, ईमान क्या जानोगे उन आँखों का, जो कभी उसके सामने उठी नहीं..!